Amriteshwari
अमृतेश्वरी
स्कन्दपुराण : काशीखण्ड
देवी पशुऽपतेः पश्चादमृतेश्वर सन्निधौ । स्नात्वा चैवामृते कूपे नमनीया प्रयत्नतः ।।
पूजयित्वा नरो भक्त्या देवताममृतेश्वरीम् । अमृतत्वं भजेदेव तत्पादांबुज सेवनात् ।।
धारयंतीं महामायाममृतस्य कमंडलुम् । दक्षिणेऽभयदां वामे ध्यात्वा को नाऽमृतत्वभाक् ।।
पशुपति के पीछे और अमृतेश्वर के निकट देवी अमृतेश्वरी हैं। अमृतकूप में पवित्र स्नान करने के बाद उसे श्रद्धापूर्वक प्रणाम करना चाहिए। मनुष्य को श्रद्धापूर्वक अमृतेश्वरी देवी की पूजा करनी चाहिए। उनके कमल-सदृश चरणों का सहारा लेकर भक्त को अमरता प्राप्त होगी। दाहिने हाथ में अमृत का घड़ा धारण करने वाली और बाएं हाथ से अभय प्रदान करने वाली देवी महामाया का ध्यान करने से किसे अमरता नहीं मिलेगी? - [स्कंदपुराण काशीखंड (अध्याय : ७०)]
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For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी