Annapurna Murti From Canada (कनाडा से प्राप्त मां अन्नपूर्णा की चल मूर्ति)

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कनाडा से प्राप्त मां अन्नपूर्णा की चल मूर्ति

प्राप्त मूर्ति की लंबाई X चौड़ाई X मोटाई = ६.७ इंच X ३.५ इंच X १.६ इंच 
प्राण प्रतिष्ठा (खंडित स्थिति में) :  सोमवार, देवुत्थान एकादशी 2078 विक्रम सम्वत, वाराणसी, भारत (15/11/2021)
मुख्यमंत्री द्वारा प्राण प्रतिष्ठा (खंडित स्थिति में) होने के पश्चात पुनः स्थान परिवर्तन : कारण स्पष्ट नहीं, सभी धर्म भ्रष्ट 

कनाडा से प्राप्त मां अन्नपूर्णा मूर्ति की ऊंचाई 17 सेमी (६.७ इंच), चौड़ाई 9 सेमी  (३.५ इंच) और मोटाई 4 सेमी (१.६ इंच) है। मूर्ति की लंबाई चौड़ाई और ऊंचाई तथा अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि यह चल तथा खंडित प्रतिमा है। काशी में चल प्रतिमाएं, काशी वासियों के घरों में तथा गंगा घाट के किनारे मढ़ी में मिलती है अतः यह सिद्ध होता है कि जिन प्रतिमा को काशी की मूल अन्नपूर्णा बता कर ढिंढोरा पिटवाया गया वह काशी के घाटों से प्राप्त माता अन्नपूर्णा का चल विग्रह है


यदि काशी के घाटों से प्राप्त चल प्रतिमाएं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 900 साल पुरानी बताई जा रही हैं तो काशी के छोटे-छोटे मंदिरों का विध्वंस कॉरिडोर के लिए क्यों किया गया? क्या उनके कई हजारों साल प्राचीन होने का प्रमाण नहीं था?


अब आते हैं इसके दूसरे पहलू पर - मूर्ति को देखने से यह स्पष्ट होता है कि वह खंडित स्थिति में है खंडित स्थिति में शास्त्र केवल दो जगह ही यह अनुमति देते हैं कि इनका पूजन खंड-खंड में भी संभव है। पहला भगवान शालिग्राम तथा दूसरा भगवान नर्मदेश्वर या शिवलिंग यदि खंड-खंड भी हो जाए तो इनका पूजन करना शास्त्र सम्मत है। माता की यह, चल मूर्ति (कनाडा से प्राप्त) खंडित स्थिति में श्री काशी विश्वनाथ धाम में वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्राण प्रतिष्ठित कैसे कर दी गई? सबसे बड़ी आश्चर्य की बात कि प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति का स्थान तत्पश्चात कैसे परिवर्तित हो गया?


धाम परिसर में इस प्रकार की शास्त्र विरुद्ध कर्मकांडीय सेवा देने वाले ब्राह्मण सत्ता के डर से धर्म विहीन हो चुके हैं। इन्हें ना तो शास्त्र का भय है! ना ही देव प्रकोप का! यह सभी चांडाल बनने की ओर अग्रसर है।

काशी के बहुत से धर्मनिष्ठ लोग खंडित प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा को अवैध मान कर शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे चुके हैं। संयोगवश आज का दौर चुनौती स्वीकार करने वालों का नहीं रहा। वर्तमान सत्ता सनातन धर्म की स्वयंभू ठेकेदार है, ऊपर से ब्रह्मांड के सबसे बड़े विद्वानों की टोली - "काशी विद्वत परिषद (तथाकथित)" सत्ता के पादारविंदों में विराजमान है, नवोदित (तंत्र) संत समिति कदमताल कर रही है। जहां इतने तंत्रों की शक्तियां एकजुट हों वहां बिना मंत्रों के भी प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है। इसलिए इस प्राण प्रतिष्ठा में शास्त्रार्थ की भी कोई गुंजाइश नहीं दिखती। सर्वाधिक आपत्तिजनक कोई बात है तो वह है - "राजहठ"। 


प्राण प्रतिष्ठा दो प्रकार की होती है :- एक होती है चल और दूसरी अचल। घरो में (अधिकांशतः) चल प्रतिष्ठा तथा मंदिरो में अचल प्रतिष्ठा होती है। घर में केवल छोटा सा पूजा घर होता है जिसमे किसी मूर्ती की प्राणप्रतिष्ठा नहीं की जाती। सभी मूर्तियाँ हथेली (९ इंच) से छोटी होनी चाहिए या देव चित्र होना चाहिए। इसके बाद भी अगर किसी तरह आपने मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा करा दी है, तो अब उन्हें वहां से हटाने पर दैव श्राप लगता है। चाहे आप भले ही उन्हें एक नया स्थान दे, लेकिन दैव स्थान पर तोड़ने से आपको दैव श्राप तो भोगना ही पड़ेगा।


काशी की मूल अन्नपूर्णा का स्थान

शिव की जटाओं से निकली पवित्र मां गंगा के तट पर बसी काशी में जीवों की अन्नप्रदात्री भवानी (अन्नपूर्णा) साथ मोक्ष प्रदाता शंकर जी और ऐश्वर्य, सौभाग्य की प्रदात्री माता लक्ष्मी सहित समस्त लौकिक-अलौकिक भोगों के प्रदाता श्रीहरि विष्णु यहाँ वास करते हैवर्तमान में जहां अन्नपूर्णा मंदिर है वह भवानी तीर्थ (अन्नपूर्णा तीर्थ) पर ही बना हुआ है। अतः मूल अन्नपूर्णा जी का स्थान ढूंढीराज गणेश से सटा अन्नपूर्णा मंदिर ही है। 


पञ्चक्रोशात्मकं लिङ्गं ज्योतिरूपसनातनम् । भवानीशङ्कराभ्यांच लक्ष्मी श्रीशिवराजितम् ।।

पंचकोशात्मक भगवान् शिव का लिङ्ग शाश्वत तथा ज्योति स्वरूप है। भवानी तथा शिवजी के साथ लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु इस लिंग में विराजमान हैं।

अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे । ज्ञानवैराग्यसिद्धयर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ।।

हे अन्नपूर्णे ! तुम सदा पूर्ण हो, तुम शंकर की प्राण प्रिया हो, तुम मुझे ज्ञान, वैराग्य की सिद्धि के लिए भिक्षा दो।

भवानीशी नमस्यौ च शुक्रेशात्पश्चिमे शुभी ।  भक्तपोतप्रदौ तौ तु निजभक्तस्य सर्वदा ।।

शुक्रेश्वर के पश्चिम अपने भक्तों को सदैव पार उतारने वाले शुभप्रद भवानी-शंकर को प्रणाम करना चाहिए।

ततोऽपि पुण्यदं राजन् भवानीतीर्थमुत्तमम् । यत्र स्नात्वा भवानीशौ दृष्ट्वा नैव पुनर्भवेत् ।।

हे राजन् ! उत्तम भवानी तीर्थ उससे भी अधिक पुण्यप्रद है, वहाँ पर भी स्नान कर भवानी और शिव के दर्शन करने से फिर जन्म नहीं लेना पड़ता।

प्रातः प्रातः समुत्थाय ढुण्डिराजं नमेत्पुनः । भवानीं शङ्करम्पश्चात्कालभैरवमेव च ।।

सबेरे सबेरे उठकर सर्वप्रथम भगवान् दुण्डिराज को प्रणाम करे उसके पश्चात् पुनः भवानी (माता अन्नपूर्णा) और भगवान् शंकर को प्रणाम करे।

भवानीं दुण्डिराजं च दण्डपाणि च भैरवम् । पूजयेन्नित्यशः काश्यां सूक्ष्मपापाभिभूतये ।।

सूक्ष्म पापों का नाश करने के लिए काशी में भवानी, ढुण्डिराज, दण्डपाणि तथा कालभैरव का नित्य दर्शन-पूजन अपेक्षित है।


भारतीय उच्चायोग, ओटावा - प्रेस विज्ञप्ति (29.11.2020) 

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  ने 900 साल पुरानी मूर्ति की वापसी के लिए कनाडा सरकार को भी धन्यवाद दिया। कनाडा में भारत का उच्चायोग मैकेंजी आर्ट गैलरी में रेजिना विश्वविद्यालय के संग्रह से अन्नपूर्णा मूर्ति (प्रतिमा) की वापसी की सुविधा प्रदान कर रहा है। यह प्रतिमा 19 नवंबर को एक आभासी कार्यक्रम में अंतरिम राष्ट्रपति और रेजिना विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. थॉमस चेज़ द्वारा भारत को सौंपी गई थी। ग्लोबल अफेयर्स कनाडा और कनाडा बॉर्डर सर्विस एजेंसी के अधिकारी भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।


यह प्रतिमा मैकेंजी आर्ट गैलरी द्वारा प्रशासित विश्वविद्यालय के संग्रह का हिस्सा थी और मूल रूप से नॉर्मन मैकेंजी के कला संग्रह का हिस्सा थी, जिनकी 1936 में मृत्यु हो गई थी। विश्वविद्यालय को हाल ही में पता चला कि मूर्ति को 1913 में संदिग्ध परिस्थितियों में हासिल किया गया था। और नैतिक अधिग्रहण के मौजूदा सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था। एक बार जब विश्वविद्यालय के अधिकारियों को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने इस सांस्कृतिक खजाने को भारत के लोगों को वापस करने के लिए तत्काल कदम उठाए और इसकी वापसी की सुविधा के लिए भारतीय उच्चायोग से संपर्क किया।


वाराणसी के श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर में माता अन्नपूर्णा के चल (खंडित) विग्रह की स्थापना : लगभग 100 साल पहले वाराणसी (के घाटों) से चोरी हुई और हाल ही में कनाडा से प्राप्त की गई मां अन्नपूर्णा की मूर्ति (चल प्रतिमा, ६ इंच) 15 नवंबर 2021 (देवोत्थान एकादशी) को काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित कर दी गयी। भारत सरकार ने 11 नवंबर को दिल्ली में एक कार्यक्रम में यूपी सरकार को मूर्ति सौपी थी। (ANI)


ऐतिहासिक तथ्य : कथित रूप से चोरी की प्रतिमा के साथ 108 वर्ष का पवित्र भावनात्मक संबंध निकालना भी कम मजेदार नहीं। असल में अन्नपूर्णा की यह ६.७ इंच की वापस आई प्रतिमा रेजिना विश्वविद्यालय, कनाडा के मैकेंजी संग्रहालय में रखी हुई थी। नॉर्मन मैकेंजी नाम के व्यक्ति कलात्मक वस्तुओं के संग्रहकर्ता थे। उन्होंने देश-विदेश से तमाम प्रकार की चीजें अपने निजी संग्रहालय में संग्रहित की। बाद के दिनों में अपने कला संग्रह को उन्होंने रेजिना विश्वविद्यालय में दान दे दिया, जिन्हें 1936 में पंजीकृत किया गया तथा उन्हीं के नाम पर विश्वविद्यालय में मैकेंजी आर्ट गैलरी स्थापित की गई। मैकेंजी कला दीर्घा को बाद में और विस्तार मिला तथा यह कला दीर्घा क्रमशः कनाडा के इतिहास व संस्कृति पर केंद्रित होती गई। नॉर्मन मैकेंजी घूमते- फिरते सन 1913 में वाराणसी भी आए थे। प्रतिमा चोरी के 108 वर्ष की गणना को मैकेंजी के बनारस आने की तिथि से जोड़ा जा रहा है।इस फार्मूले के अनुसार इसका सीधा मतलब यह निकलेगा कि या तो  मैकेंजी ने प्रतिमा को चुराई या उनके कहने से प्रतिमा चुराई गई; जिसे लेकर वह वापस कनाडा गए। काशी में एक विदेशी व्यक्ति आकर किसी मंदिर की महत्वपूर्ण प्रतिमा को चुरा ले जाए अथवा उसके कहने से मंदिर की प्रतिमा गायब कर दी जाए,  यह न तो तब संभव था न  आज और न ही ऐसा कुछ इतिहास में दर्ज है। 


For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


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