Rathasaptamī
रथसप्तमी, काशी माहात्म्य
काशी में रथसप्तमी माहात्म्य : माघ महीने में शुक्ल पक्ष की सातवीं तिथि जिसे ब्राह्मण रथसप्तमी कहते हैं, वह दिन है जिस दिन पूर्व में सूर्य को रथ प्राप्त हुआ था। काशी में रथसप्तमी के दिन (अर्थात् माघ के शुक्ल पक्ष में सातवें दिन) गंगा और असि के संगम में लोलार्क में पवित्र स्नान करने वाले मनुष्य के सात जन्मों के कृत पापो से मुक्त हो जाता है। यदि कभी रविवार को रथसप्तमी पड़े, तब इस दिन प्रभातकाल से ही मौनी होकर आदिकेशव (आदिकेशव घाट) में स्थित विष्णु पादोदक तीर्थ में स्नान करके केशवादित्य का पूजन करे। इससे सात जन्मों की पापराशि दूर हो जाती है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_१_(माहेश्वरखण्डः)/कौमारिकाखण्डः/अध्यायः_०५
यस्यां तिथौ रथं पूर्वं प्राप देवो दिवाकरः॥ सा तिथिः कथिता विप्रैर्माघे या रथसप्तमी॥ १२९ ॥
तस्यां दत्तं हुतं चेष्टं सर्वमेवाक्षयं मतम्॥ सर्वदारिद्र्यशमनं भास्करप्रीतये मतम्॥ १३० ॥
माघ महीने में शुक्ल पक्ष की सातवीं तिथि जिसे ब्राह्मण रथसप्तमी कहते हैं, वह दिन है जिस दिन पूर्व में सूर्य को रथ प्राप्त हुआ था। यदि उस दिन दान-दक्षिणा दी जाये, हवन किया जाये अथवा यज्ञ किया जाये तो इन सबका अक्षय लाभ होता है। इससे सारी दरिद्रता दूर हो जाती है तथा इसे सूर्य को प्रसन्न करने वाला माना जाता है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०४६
लोलार्के रथसप्तम्यां स्नात्वा गंगासिसंगमे । सप्तजन्मकृतैः पापैर्मुक्तो भवति तत्क्षणात् ॥ ५५ ॥
रथसप्तमी के दिन (अर्थात् माघ के शुक्ल पक्ष में सातवें दिन) गंगा और असि के संगम में लोलार्क में पवित्र स्नान करने वाले मनुष्य के सात जन्मों के कृत पापो से मुक्त हो जाता है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०५१
अगस्ते रथसप्तम्यां रविवारो यदाप्यते । तदा पादोदके तीर्थे आदिकेशव सन्निधौ ॥७६॥
स्नात्वोषसि नरो मौनी केशवादित्यपूजनात् । सप्तजन्मार्जितात्पापान्मुक्तो भवति तत्क्षणात् ॥७७॥
हे मुनिवर! यदि कभी रविवार को रथसप्तमी पड़े, तब इस दिन प्रभातकाल से ही मौनी होकर आदिकेशव में स्थित पादोदक तीर्थ में स्नान करके केशवादित्य का पूजन करे। इससे सात जन्मों की पापराशि दूर हो जाती है।
यद्यज्जन्मकृतं पापं मया सप्तसु जन्मसु । तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हंतु सप्तमी ॥७८॥
एतज्जन्मकृतं पापं यच्च जन्मांतरार्जितम् । मनोवाक्कायजं यच्च ज्ञाताज्ञाते च ये पुनः ॥७९॥
इति सप्तविधं पापं स्नानान्मे सप्तसप्तिके । सप्तव्याधिसमायुक्तं हर माकरि सप्तमि ॥८०॥
एतन्मंत्रत्रयं जप्त्वा स्नात्वा पादोदके नरः । केशवादित्यमालोक्य क्षणान्निष्कलुषो भवेत् ॥८१॥
केशवादित्यमाहात्म्यं शृण्वञ्श्रद्धासमन्वितः । नरो न लिप्यते पापैः शिवभक्तिं च विंदति ॥८२॥
मंत्र है- “सात जन्मों से मैंने आजन्म जो पाप किया है, माकरी सप्तमी मेरे सभी पाप, रोग तथा शोक को दूर करे।” “मैंने इस जन्म में तथा जन्मान्तर में मन , वाणी तथा शरीर से जो भी पाप अनजाने में अथवा जानबूझ कर अर्जित किया है, ऐसे सप्विध पाप इस सप्तमी में स्नान करने से नष्ट हो जायें। यह माकरी सप्त भी सप्तव्याधियों का भी हरण करे।” इस मंत्र को तीन बार जप कर स्नान करे तथा केशवादित्य का दर्शन करके उनका पादोदक पान करे। सससे वह क्षणमात्र में कलुष रहित होता है। जो श्रद्धापूत मानस से केशवादित्य की महिमा का श्रवण करते हैं, के हृदय से पाप दूर होता है तथा वहां शिवभक्ति की स्थिति हो जाती है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_१_(माहेश्वरखण्डः)/कौमारिकाखण्डः/अध्यायः_४३
अनेन विधिना कर्णो भास्करार्घ्यं प्रयच्छति॥ ततः सूर्यस्य पार्थासावात्मवद्वल्लभो मतः॥७४॥
अशक्तश्चेन्नित्यमेकमर्घ्यं दद्याद्दिवाकृते॥ ततोऽत्र रथसप्तम्यां कुंडे देयः प्रयत्नतः॥७५॥
अश्वमेधफलं प्राप्य सूर्यलोक मवाप्नुयात्॥ तस्मात्सर्वप्रयत्नेन दातव्योऽर्घोऽत्र भारत॥७६॥
हे पृथा (कुन्ती) के पुत्र! कर्ण इस विधि के अनुसार भास्कर को अर्घ्य देते हैं। इसलिए उन्हें सूर्य का भक्त माना जाता है। यदि असमर्थ है तो, उसे प्रतिदिन सूर्य को केवल एक अर्घ्य देना चाहिए। फिर रथसप्तमी के दिन इसका विधिपूर्वक कुंड में अनुष्ठान करना चाहिए। उसे अश्व-यज्ञ का फल प्राप्त होगा तथा सूर्य लोक की प्राप्ति होगी।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_१००
रविवारे रवेर्यात्रा षष्ठ्यां वारविसंयुजि ॥ तथैव रविसप्तम्यां सर्वविघ्नोपशांतये ॥ ७५ ॥
समस्त विघ्नो के शमनार्थ सूर्यदेव की तीर्थयात्रा रविवार युक्त षष्ठी-सप्तमी को विहित है।
For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥