Dehli Vinayak (काशी की देहली पर देहली विनायक की तैनाती एवं देवताओं द्वारा काशीक्षेत्र रक्षार्थ, इंद्र द्वारा वरणा नदी एवं अग्नि द्वारा असि नदी का निर्माण कर क्षेत्र के क्रमशः उत्तर तथा दक्षिण में स्थापित करना)

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Dehli Vinayak Temple Kashi Khand

Dehli Vinayak
देहली विनायक

देहली (संस्कृत) : प्रवेशद्वार का चौखट जिसे लाँघकर लोग भीतर जाते हैं।

स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०५७

॥ ईश्वर उवाच ॥

अन्यच्च कथयाम्यत्र शृण्वंत्वेते दिवौकसः । ढुंढिना क्षेत्ररक्षार्थं यत्रयत्र स्थितिः कृता ॥५८॥

काश्यां गंगासि संभेदे नामतोर्कविनायकः । दृष्टोर्कवासरे पुंभिः सर्वतापप्रशांतये ॥५९॥

दुर्गो नाम गणाध्यक्षः सर्वदुर्गतिनाशनः । क्षेत्रस्य दक्षिणे भागे पूजनीयः प्रयत्नतः ॥६०॥

भीमचंडी समीपे तु भीमचंडविनायकः । क्षेत्रनैर्ऋतदेशस्थो दृष्टो हंति महाभयम् ॥६१॥

क्षेत्रस्य पश्चिमे भागे स देहलिविनायकः । सर्वान्निवारयेद्विघ्नान्भक्तानां नात्र संशयः ॥६२॥

क्षेत्रवायव्यदिग्भागे उद्दंडाख्यो गजाननः । उद्दंडानपि विघ्नौघान्भक्तानां दंडयेत्सदा ॥६३॥

काश्याः सदोत्तराशायां पाशपाणिर्विनायकः । विनायकान्पाशयति भक्त्या काशीनिवासिनाम् ॥६४॥

गंगावरणयोः संगे रम्यः खर्वविनायकः । अखर्वानपि विघ्नौघान्भक्तानां खर्वयेत्सताम् ॥६५॥

प्राच्यां तु क्षेत्ररक्षार्थं सिद्धः सिद्धिविनायकः । पश्चिमे यमतीर्थस्य साधकक्षिप्रसिद्धिदः ॥६६॥

महादेव कहते हैं : ये ढुंढि गणेश काशीक्षेत्र रक्षार्थ जहां-जहां है, वह सब कहता हूं। ये देवगण उसे श्रवण करें। काशी में असि-गंगा-संगम के निकट अर्कविनायक गणेश हैं। रविवार को उनके दर्शन से सभी पाप दूर होते हैं। इस काशी के दक्षिणभाग में स्थित सर्वदुर्गति नाशक दुर्गनामक गणेश का पूजन यत्नतः करना चाहिये। भीमचण्डी के निकट काशीक्षेत्र के नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में स्थित भीमचण्डविनायक का दर्शन महाभय शान्त करता है। इस क्षेत्र के पश्चिम भाग में स्थित देहली विनायक भक्तों के सभी विध्नों का निवारण करते हैं। इसमें कोई संशय नहीं है। काशी क्षेत्र के वायुकोण (उत्तर-पश्चिम) में स्थित उदण्ड नामक गणेश भक्तों के प्रचण्ड विघ्नों का नाश करते हैं। काशी के उत्तर में स्थित पाशपाणि गणेश भक्ति के साथ काशीवासी लोगों के विनाशक ग्रहादि को पाशबद्ध करते हैं। गंगा तथा वरणा के संगम के समीप स्थित रमणीय खर्व विनायक भक्तों के महा-महाविघ्नो को भी नष्ट कर देते हैं। काशी के पूर्वभाग में यमतीर्थ के पश्चिम में अवस्थित सिद्धविनायक साधकों को शीघ्र सिद्धि प्रदान करते हैं।

प्राच्या देहलिविघ्नेशात्कूश्मांडाख्यो विनायकः । पूजनीयः सदा भक्तेर्महोत्पात प्रशांतये ॥७२॥

देहली विनायक के पूर्वभाग में स्थित कूष्माण्ड विनायक महान्‌ उत्पात शान्ति के लिये भक्तों द्वारा सतत्‌ पूजित हैं।


स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०३०

यमेंद्राग्निमुखा देवा दृष्ट्वा मुक्तिपथोन्मुखान् ॥१७*१/२॥

सर्वान्सर्वे समालोक्य रक्षां चक्रुः पुरापुरः । असिं महासिरूपां च पाप्यसन्मतिखंडनीम् ॥१८॥

दुष्टप्रवेशं धुन्वानां धुनीं देवा विनिर्ममुः । वरणां च व्यधुस्तत्र क्षेत्रविघ्ननिवारिणीम् ॥१९॥

दुर्वृत्तसुप्रवृत्तेश्च निवृत्तिकरणीं सुराः । दक्षिणोत्तरदिग्भागे कृत्वाऽसिं वरणां सुराः ॥२०॥

पूर्वकाल में यम, इन्द्र तथा अग्नि आदि देवगण ने समस्त लोगों को मुक्तिमार्गोन्मुख देखकर इस प्रकार से इस पुरी के रक्षण का विधान किया था। उन्होंने पापी लोगों की दुर्मति का दलन करने वाली, दुष्टों को प्रवेश करने से रोकने वाली महासिद्धिप्रदा असि नदी तथा क्षेत्र के विध्नों का नाश करने वाली दुवृत्त लोगों की दुष्प्रवत्ति का रोध करने वाली वरणा नदी का निर्माण करके काशी क्षेत्र के दक्षिण तथा उत्तर भाग में (दक्षिण में असि, उत्तर में वरणा) दोनों नदियों को स्थापित किया।

क्षेत्रस्य मोक्षनिक्षेप रक्षां निर्वृतिमाप्नुयुः । क्षेत्रस्य पश्चाद्दिग्भागे तं देहलिविनायकम् ॥२१॥

स्वयं व्यापारयामास रक्षार्थं शशिशेखरः । अनुज्ञातप्रवेशानां विश्वेशेन कृपावता ॥२२॥

ते प्रवेशं प्रयच्छंति नान्येषां हि कदाचन ॥

इत्यर्थे कथयिष्येऽहमितिहासं पुरातनम् । आश्चर्यकारिपरमं काशीभक्तिप्रवर्धनम् ॥२३॥

देवताओं ने इस प्रकार से उपाय किया और क्षेत्र को मुक्तिदान करके परम निवृत्ति युक्त हो गये। भगवान्‌ चन्द्रमौलि ने काशी के पिछले भाग की रक्षा का आदेश देहली विनायक को प्रदान किया। भगवान्‌ विश्वनाथ कृपापूर्वक जिनको प्रवेश की आज्ञा देते हैं, देहली विनायक उनको ही काशी में प्रवेश करने देते हैं। इस विषय में काशी का एक भक्तिवर्द्धक तथा विस्मयप्रद प्राची इतिहास कहता हूं।


स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०९७

मुक्तिक्षेत्रप्रमाणं च क्रोशं क्रोशं च सर्वतः। आरभ्य लिंगादस्माच्च पुण्यदान्मध्यमेश्वरात् ॥१५१॥

वाराणसी मुक्तिक्षेत्र (सायुज्य मोक्ष) की सीमा पुण्यदायक मध्यमेश्वर लिंग से सर्वत्र दिशा में १ क्रोश (३.४ कि.मी.) है।


॥ कृत्यकल्पतरु (वाराणसीमाहात्म्यम) ॥

पिङ्गला नाम या नाडी आग्नेयी सा प्रकीर्तिता । शुष्का सरीच्च सा ज्ञेया लोलार्के यत्र तिष्ठति ॥

इडानाम्नी च या नाडी सा सौम्या सम्प्रकीर्तिता । वरणा नाम सा ज्ञेया केशवो यत्र संस्थितः ॥

आभ्यां मध्ये तु या नाडी सुषुम्ना च प्रकीर्तिता । मत्स्योदरी च सा ज्ञेया विष्णुं तत्प्रकीर्तितम् ॥

॥ स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_००५ ॥

क्षेत्रं पवित्रं हि यथाऽविमुक्तं नान्यत्तथायच्छ्रुतिभिः प्रयुक्तम्॥

न धर्मशास्त्रैर्न च तैःपुराणैस्तस्माच्छरण्यं हि सदाऽविमुक्तम्॥२४॥

सहोवाचेति जाबालिरारुणेसिरिडामता॥ वरणापिंगला नाडी तदंतस्त्वविमुक्तकम्॥२५॥

सा सुषुम्णा परानाडी त्रयं वाराणसीत्वसौ॥ तदत्रोत्क्रमणे सर्वजंतूनां हि श्रुतौ हरः॥२६॥

तारकं ब्रह्मव्याचष्टे तेन ब्रह्म भवंति हि॥ एवं श्लोको भवत्येष आहुर्वै वेदवादिनः॥२७॥

भगवानंतकालेऽत्र तारकस्योपदेशतः॥ अविमुक्तेस्थिताञ्जन्तून्मोचयेन्नात्र संशयः॥२८॥

नाविमुक्तसमंक्षेत्रं नाविमुक्तसमा गतिः ॥ नाविमुक्तसमं लिंगं सत्यं सत्यं पुनःपुनः ॥ २९ ॥

महर्षि अगस्त्य लोपामुद्रा से कहते हैं: श्रुति-स्मृति तथा प्रसिद्ध पुराणों के अनुशासन के अनुसार अविमुक्त क्षेत्र के समान स्थान ही नहीं है। अतः अविमुक्त की शरण में जाना ही सतत्‌ कर्त्तव्य है। महर्षि जाबालि का कथन है कि “हे आरुणि! असि नदी इड़ा नाड़ी है तथा वरुणा नदी पिंगला नाड़ी है। इस दो नाड़ी के बीच का स्थल ही अविकमुक्त क्षेत्र है। काशी ही सुषुम्ना नदी है। यही नाड़ी त्रयात्मिका वाराणसी है। इस वाराणसी में सभी प्राणीगण के प्राण त्याग के समय विश्वेश्वर शंकर कानों में तारक ब्रह्म का उपदेश प्रदान करते हैं। उसी से प्राणी ब्रह्मरूप हो जाता है। इस सम्बन्ध में वेदवादी लोग एक श्लोक कहते हैं। “इस काशी क्षेत्र में भगवान्‌ महादेव अन्तकाल में तारक ब्रह्म का उपदेश देकर अविमुक्त क्षेत्रस्थ जनगण की मुक्ति का सम्पादन करते हैं। इसमें सन्देह नहीं है।'” अविमुक्त के समान न तो कोई क्षेत्र है। यहां के समान कोई शिवलिंग भी नहीं है। यह सत्य है। मैं इसे तीन बार सत्य है, सत्य है, सत्य है, कह रहा हूँ।

स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_००७

प्रयागस्य गुणान्ज्ञात्वा शिवशर्मा द्विजः सुधीः । तत्र माघमुष्त्वाऽथ प्राप वाराणसीं पुरीम्॥६९॥

प्रवेश एव संवीक्ष्य स देहलिविनायकम् । अन्वलिंपत्ततो भक्त्या साज्यसिंदूरकर्दमैः॥७०॥

निवेद्यमोदकान्पंच वंचयंतं निजं जनम् । महोपसर्गवर्गेभ्यस्ततोंऽतः क्षेत्रमाविशत्॥७१॥

सुबुद्धि ब्राह्मण शिवशर्मा ने प्रयाग की समस्त गुणावलि जानकर सम्पूर्ण माघमास में वहां अवस्थान किया। तदनन्तर वे वाराणसी आ गये। वाराणसी में प्रवेश करते ही उन्होंने (काशी की देहली पर) देहली विनायक को देखकर भत्तिपूर्वक घृताक्त सिन्दूर द्वारा उनका लेपन किया। देहली विनायक महामहाविघ्न तथा उपसर्गों से भक्तों की रक्षा करते हैं। देहली विनायक को पांच मोदक निवेदित करके शिवशर्मा ने काशी में प्रवेश किया।


स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०६१

अहं गिरिनृसिंहोस्मि तद्देहलिविनायकात् । प्राच्यां प्रबलपापौ घगजानां प्रविदारणः ॥१९१॥

बिंदुमाधव कहते हैं : मैं देहली विनायक के पूर्वाश में भक्तों के पापनाशक गिरिनृसिंह के नाम से अवस्थान करता हूँ। 


स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०६९

देवदारुवनाद्दंडी दंडयन्पातकावलीः । वाराणस्यां समागत्य स्थितो लिंगाकृतिर्विभुः ॥१०१॥

प्राच्यां दंडीश्वरः पूज्यः स देहलिविनायकात् । तस्यार्चनेन मर्त्त्यानां न पुनर्भव ईक्ष्यते ॥१०२॥

पापराशि को दण्ड देने वाले लिङ्गाकृति भगवान्‌ दण्डी देवदार वन से काशी आकर देहली विनायक के पूर्व भाग में स्थित रहते हैं। उनकी पूजा द्वारा मानवगण संसार दर्शन नहीं करते अर्थात पुनर्जन्म नहीं लेते।


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EXACT GPS LOCATION : 25.352343269162763, 82.85042636990225

देहली विनायक मंदिर भाऊपुर, टेकरिया पंचक्रोशी मार्ग वाराणसी पर स्थित है।
Dehli Vinayak Temple is situated on Bhaupur, Tekaria Panchkroshi Marg Varanasi.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी

॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥


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