Ganga Saptmi (गंगा सप्तमी)

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॥ ॐ नमो गङ्गायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः

पद्मपुराणम्/खण्डः_५_(पातालखण्डः)/अध्यायः_०८५

किंचिदेतन्मयाप्रोक्तं रहस्यं समयो हि मे । स्नातुं गंतुं च गंगायां न कथावसरोऽधिकः ४७

प्राप्तोऽयं माधवो मासः पुण्यो माधववल्लभः । तस्यापि सप्तमी शुक्ला गंगायामतिदुर्ल्लभा ४८

वैशाख शुक्ल सप्तम्यां जाह्नवी जह्नुना पुरा । क्रोधात्पीता पुनस्त्यक्ता कर्णरंध्रात्तु दक्षिणात् ४९

तस्यां समर्चयेद्देवीं गंगां गगनमेखलाम् । स्नात्वा सम्यग्विधानेन स धन्यः सुकृती नरः ५०

तस्यां यस्तर्पयेद्देवान्पितॄन्मर्त्यो यथाविधि । साक्षात्पश्यति तं गंगा स्नातकं गतपापकम् ५१

न माधव समो मासो न गंगा सदृशी नदी । दुर्ल्लभः खलु योगोऽयं हरिभक्त्यैव लभ्यते ५२

विष्णुपादोदकोद्भूता ब्रह्मलोकादुपागता । त्रिभिः स्रोतोभिरश्रांता या पुनाति जगत्त्रयम् ५३

यह वैशाख का महीना उपस्थित है, जो भगवान् लक्ष्मीपति को अत्यन्त प्रिय है। इसकी भी आज वैशाख शुक्ल सप्तमी है; इसमें गंगाका स्नान अत्यन्त दुर्लभ है। पूर्वकाल में जह्नु ने वैशाख शुक्ल सप्तमी को क्रोध में आकर गंगाजी को पी लिया था और फिर अपने दाहिने कान के छिद्र से उन्हें बाहर निकाला था अतः जह्नु की कन्या होने के कारण गंगा को 'जाहनवी' कहते हैं। इस तिथि को स्नान करके जो आकाश की मेखलाभूत गंगा देवी का उत्तम विधान के साथ पूजन करता है, वह मनुष्य धन्य एवं पुण्यात्मा है। जो वैशाख शुक्ल सप्तमी को विधिपूर्वक गंगा में देवताओं और पितरों का तर्पण करता है, उसे गंगादेवी कृपा दृष्टि से देखती हैं तथा वह स्नानके पश्चात् सब पापों से मुक्त हो जाता है। वैशाख के समान कोई मास नहीं है तथा गंगाके सदृश दूसरी कोई नदी नहीं है। इन दोनों का संयोग दुर्लभ है। भगवान्की भक्ति से ही ऐसा सुयोग प्राप्त होता है। गंगाजी का प्रादुर्भाव भगवान् श्रीविष्णु के चरणों से हुआ है। वे ब्रह्मलोक से आकर भगवान् शंकर के जटा जूट में निवास करती हैं। गंगा समस्त दुःखौ का नाश करने वाली हैं। वे अपने तीन स्रोतों से निरन्तर प्रवाहित होकर तीनों लोकों को पवित्र करती रहती हैं।


For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी

॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥


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