Gyaneshwar (ज्ञानेश्वर - भगवान विश्वनाथ का ज्ञानमंडप एवं उसके अधिष्ठातृ देवता)

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Gyaneshwar

ज्ञानेश्वर महादेव

भगवान विश्वनाथ का ज्ञानमंडप एवं उसके अधिष्ठातृ देवता

शिवपुराण में भगवान शिव कहते हैं - सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह -मेरे ये पांच कृत्य (कार्य) मेरे पांचों मुखों द्वारा धारित हैं। काशी में भगवान शिव के पांच मुख, लिंग रूप में प्रकट हैं। धरणीश्वर, ऐश्वर्येश्वर, वैराग्येश्वर, तत्त्वेश्वर एवं ज्ञानेश्वर पंचवक्त्र शिव के रूप हैं। यह पांचों लिंग काशी में धर्मेश्वर लिङ्ग के सापेक्ष स्थित हैं। ज्ञानेश्वर लिङ्ग भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख ईशान का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

भगवान विश्वनाथ का ज्ञान मंडप : काशी में भगवान विश्वनाथ के प्रासाद को एक सीमित परिधि की दृष्टि से देखा जा रहा है। ज्ञान मंडप, ऐश्वर्य मंडप आदि मंडपों को सामान्य मंदिर के मंडप के रूप में वर्तमान कालखंड के लोग देख रहे हैं। यदि हम पुराण का आश्रय लेकर यथार्थ जानने का प्रयत्न करते हैं तो इन मंडपों का क्षेत्र विस्तृत है। 

 ॥ ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानाम्। ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम् ॥ 
ईशान नामक जो ऊर्ध्वमुख देव हैं, वे वेदशास्त्रादि चौंसठ कला और विद्याओं के नियामक हैं तथा सब प्राणियों के ईश्वर हैं। वेद के पालक हिरण्यगर्भ के अधिपति ब्रह्म परमात्मा हमारे ऊपर अनुग्रह करने के निमित्त शान्त और सदा शिवरूप हों...

भगवान शिव के पांच मुख- सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान हुए और प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र बन गए। तभी से वे 'पंचानन' या 'पंचवक्त्र' कहलाने लगे। सृष्टि, स्‍थिति, लय, अनुग्रह एवं निग्रह- इन 5 कार्यों की निर्मात्री 5 शक्तियों के संकेत शिव के 5 मुख हैं। पूर्व मुख सृष्टि, दक्षिण मुख स्थिति, पश्चिम मुख प्रलय, उत्तर मुख अनुग्रह (कृपा) एवं ऊर्ध्व मुख निग्रह (ज्ञान) का सूचक है।

स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०६१
ज्ञानतीर्थं च तत्रैव ज्ञानदं सवर्दा नृणाम् । कृताभिषेकस्तत्तीर्थे दृष्ट्वा ज्ञानेश्वरं शिवम् ॥
ज्ञानवापीसमीपस्थो ज्ञानेशो यैः समर्चितः । ज्ञानभ्रंशो न तेषां स्यादपि पंचत्वमृच्छताम्॥
ज्ञानतीर्थ भी वहाँ है, जो मनुष्यों को बुद्धि प्रदान करता है। उस तीर्थ में स्नान करना चाहिए और ज्ञानेश्वर शिव का दर्शन करना चाहिए। यदि लोग ज्ञानवापी समीप स्थित ज्ञानेश्वर की पूजा करते हैं, तो मरने पर भी उन्हें कभी ज्ञान की हानि नहीं होगी।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०७९
मत्प्रासादैंद्रदिग्भागे ज्ञानमंडपमस्ति यत् । ज्ञानं दिशामि सततं तत्र मां ध्यायतां सताम् ॥७५॥
मेरे प्रासाद (मन्दिर) के पूर्व की ओर जो ज्ञानमंडप (जिसके अधिष्ठातृ देवता ज्ञानेश्वर महादेव) है, वहाँ जो लोग मेरा ध्यान करते हैं, उनको मैं सर्वदा ज्ञान का उपदेश देता रहता हूँ।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०८१
ज्ञानेश्वरं तथैशान्यां ज्ञानदं सर्वदेहिनाम् । ऐश्वर्येशमुदीच्यां च लिंगाद्धर्मेश्वराच्छुभात् ॥
तद्दर्शनाद्भवेन्नृणामैश्वर्यं मनसेप्सितम् । पंचवक्त्रस्य रूपाणि लिंगान्येतानि कुंभज ॥
(धर्मेश्वर के) उत्तर-पूर्व में स्थित ज्ञानेश्वर लिंग सभी देहधारियों को ज्ञान प्रदान करने वाला है। भव्य धर्मेश्वर लिंग के उत्तर में ऐश्वर्येश है। इनके दर्शन से मनुष्य मानसिक रूप से वांछित ऐश्वर्य प्राप्त करेंगे। हे घड़े में जन्मे (अगस्त), ये लिंग पंचवक्त्र (पांच मुख वाले भगवान शिव) (धरणीश, तत्त्वेश, वैराग्येश, ज्ञानेश्वर और ऐश्वर्येश) के रूप हैं।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०८४
ततो ज्ञानहदं तीर्थं जडानामपि जाड्यहृत् । तत्र स्नातो नरो जातु ज्ञानभ्रंशं न चाप्नुयात् ॥
तत्र ज्ञानह्रदे स्नात्वा दृष्ट्वा ज्ञानेश्वरं नरः । ज्ञानं तदधिगच्छेद्वै येन नो बाध्यते पुनः ॥
इसके बाद ज्ञानाह्रद तीर्थ है जो जड की भी जड़ता (अज्ञानता) को दूर कर देता है। जो मनुष्य वहां पवित्र स्नान करता है, वह कभी ज्ञान भ्रष्ट नहीं होता है। मनुष्य को ज्ञानह्रद में पवित्र स्नान करके ज्ञानेश्वर के दर्शन करने चाहिए। इस प्रकार उसे वह ज्ञान प्राप्त होगा जिससे उसे कभी (अज्ञानता से) पीड़ा नहीं होगी।


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EXACT GPS LOCATION : 25.31041869934197, 83.01225207454924

ज्ञानेश्वर लिंग ज्ञानेश्वर सिल्क फैक्ट्री के परिसर में डी.10/32, लाहौरी टोला में स्थित है।
Gyaneshwar Linga is situated in the premises of Gyaneshwar Silk Factory at D.10/32, Lahauri Tola.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी

॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥


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