Gopreksheshwar
गोप्रेक्षेश्वर
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०६१
॥ स्कंद उवाच ॥
शृण्वगस्त्य महर्षे त्वं कथ्यमानं मयाधुना ॥ माधवेन यथाचक्षि मुनये चाग्निबिंदवे ॥३॥
स्कंद ने कहा: हे महामुनि अगस्त्य! अब मैं जो कह रहा हूँ, उसे सुनिए, जैसा कि माधव ने ऋषि अग्निबिंदु से कहा था।
॥ बिंदुमाधव उवाच ॥
गोपीगोविंदतीर्थे तु गोपीगोविंदसंज्ञकम् ॥ समर्च्य मां नरो भक्त्या मम मायां न संस्पृशेत् ॥१९ ॥
बिंदुमाधव ने कहा : गोपीगोविन्द तीर्थ में भक्तिपूर्वक गोपीगोविन्द नाम से मेरी पूजा करने से मनुष्य मेरी माया के स्पर्श से दूर रहता है।
पद्मपुराणम्/खण्डः_३_(स्वर्गखण्डः)/अध्यायः_३७
हिरण्यगर्भं गोप्रेक्षं तीर्थं चैवमनुत्तमम् ॥
काशी में हिरण्यगर्भ एवं गोप्रेक्ष नामक उत्तम तीर्थ है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०९७
सा पूजिता प्रयत्नेन सुखवस्तिप्रदा सदा ॥ महादेवस्य पूर्वेण गोप्रेक्षं लिंगमुत्तमम् ॥ ९ ॥
तद्दर्शनाद्भवेत्सम्यग्गोदानजनितं फलम् ॥ गोलोकात्प्रेषिता गावः पूर्वं यच्छंभुना स्वयम् ॥ १० ॥
वाराणसीं समायाता गोप्रेक्षं तत्ततः स्नृतम् ॥ गोप्रेक्षाद्दक्षिणेभागे दधीचीश्वरसंज्ञितम् ॥१ १॥
तद्दर्शनाद्भवेत्पुंसां फलं यज्ञसमुद्भवम् ॥ अत्रीश्वरं तु तत्प्राच्यां मधुकैटभपूजितम् ॥ १२ ॥
लिंगं दृष्ट्वा प्रयत्नेन वैष्णवं पदमृच्छति ॥ गोप्रेक्षात्पूर्वदिग्भागे लिंगं वै विज्वरं स्मृतम् ॥१३॥
तस्य संपूजनान्मर्त्यो विज्वरो जायते क्षणात् ॥ प्राच्यां वेदेश्वरस्तस्य चतुर्वेदफलप्रदः ॥ १४ ॥
महादेव के पूर्व की ओर अत्युत्तम गोप्रेक्ष लिङ्ग स्थित है। इस परमलिङ्ग का दर्शन करने वाला मनुष्य सम्यक् गोदान का फल प्राप्त करता है। पूर्वकाल में भगवान् शिव के प्रेक्षण में प्रेक्षित होकर गौयें यहां गोलोक से आईं। इसीलिये इस तीर्थ को गोप्रेक्ष कहते हैं। उक्त गोप्रेक्षलिङ्ग के दक्षिण में दधीचितीर्थ नामक एक लिङ्ग है। उसके दर्शन से मनुष्यों को यज्ञानुष्ठान का फललाभ होता है। उसके दक्षिण में मधुकैटभ पूजित अत्रीश्वर लिङ्ग है। उनका दर्शन करने से विष्णुपद प्राप्त होता है। गोप्रेक्ष लिङ्ग के पूर्व दिशा में अवस्थित विज्वरेश्वर नामक लिङ्ग की पूजा करने से मानवगण क्षणकाल में ज्वररहित हो जाते हैं। इस लिङ्ग के पश्चिम की ओर वेदेश्वर लिङ्ग है, जो चतुर्वेद फल प्रदाता है।
लिङ्गपुराणम्-पूर्वभागः/अध्यायः_९२
जन्मांतरसहस्रेषु यं न योगी समाप्नुयात् ॥ तमिहैव परं मोक्षं प्रसादान्मम सुव्रते॥६६॥
गोप्रेक्षकमिदं क्षेत्रं ब्रह्मणा स्थापितं पुरा ॥ कैलासवनं चात्र पश्य दिव्यं वरानने॥६७॥
गोप्रेक्षकमयागम्य दृष्ट्वामामत्र मानवः ॥ न दुर्गतिमवाप्नोति कल्मषैश्च विमुच्यते॥६८॥
हे प्रिये! मेरी कृपा से मनुष्य को यहाँ सहज ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, जो एक योगी को हजार जन्मों में प्राप्त नहीं होती है। यह पवित्र स्थान गोप्रेक्षक ब्रह्मा द्वारा पूर्वकाल में स्थापित किया गया था। हे देवी! यहाँ दिव्य धाम कैलास को देखो। जो मनुष्य गोप्रेक्षक जाकर मेरा दर्शन करता है, वह दुर्गति एवं कल्मष से मुक्त हो जाता है।
नारदपुराणम्-_उत्तरार्धः/अध्यायः_५०
तस्मिन्स्थाने तु सुभगे स्वयमाविरभूच्छिवः ॥ गोप्रेक्षक इति ख्यातः संस्तुतः सर्वदैवतैः ॥४३॥
गोप्रेक्षेश्वरमागत्य दृष्ट्वाभ्यर्च्य च मानवः ॥ न दुर्गतिमवाप्नोति कल्मषैश्च विमुच्यते ॥४४॥
सुभगे! इस स्थान पर भगवान् शिव स्वयं प्रकट हुए थे, जो 'गोप्रेक्षक' के नाम से विख्यात इुए। सम्पूर्ण देवता उनकी स्तुति करते हैं। गोप्रेक्षेश्वर के पास आकर उनका दर्शन-पूजन करके मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता और सब पापों से मुक्त हो जाता है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०७३
॥ स्कंद उवाच ॥
अन्यान्यपि च विंध्यारे देव्यै प्रोक्तानि शंभुना ॥ स्वभक्तानां हिताथार्य तान्यथाकर्णयाग्रज ॥५९॥
शैलेशः संगमेशश्च स्वर्लीनो मध्यमेश्वरः ॥ हिरण्यगर्भ ईशानो गोप्रेक्षो वृषभध्वजः ॥६०॥
उपशांत शिवो ज्येष्ठो निवासेश्वर एव च ॥ शुक्रेशो व्याघ्रलिंगं च जंबुकेशं चतुर्दशम् ॥६१॥
मुने चतुर्दशैतानि महांत्यायतनानि वै ॥ एतेषामपि सेवातो नरो मोक्षमवाप्नुयात् ॥६२॥
चैत्रकृष्णप्रतिपदं समारभ्य प्रयत्नतः ॥ आ चतुर्दशिपूज्यानि लिंगान्येतानि सत्तमैः ॥६३॥
स्कन्ददेव कहते हैं- हे द्विज! विन्ध्यपर्वत के शत्रु! भगवान् शंभु ने अपने भक्तगण के हितार्थ अन्य जिन लिङ्गों का वर्णन भगवती से किया था, मैं उसे भी कहता हूं। श्रवण करिये : शैलेश्वर, संगमेश्वर, स्वर्लिनेश्वर, मध्यमेश्वर, हिरण्यगर्भेश्वर, ईशानेश्वर, गोप्रेक्षेश्वर, वृषभध्वजेश्वर, उपशान्तेश्वर, ज्येष्ठेश्वर, निवासेश्वर, शुक्रेश्वर, व्याघ्रेश्वर, जम्बुकेश्वर नामक चतुर्दश लिङ्ग हैं। ये सभी चैत्रकृष्ण प्रतिपदा से प्रारंभ करके यत्नतः पूज्य हैं।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_१००
ततः कूपमुपस्पृश्य गोप्रेक्षमवलोकयेत्॥
तत्पश्चात गोप्रेक्षकूप में जल संस्कार करना चाहिए और गोप्रेक्षेश्वर का दर्शन करना चाहिए।
अतः परं प्रवक्ष्यामि गारी यात्रामनुत्तमाम्॥
शुक्लपक्षे तृतीयायां या यात्रा विष्वगृद्धिदा ॥
गोप्रेक्षतीर्थे सुस्नाय मुखनिर्मालिकां व्रजेत् ॥
इसके बाद मैं शुक्ल पक्ष की तृतीया को की जाने वाली उत्तम गौरी यात्रा का वर्णन करूंगा। यह समस्त ऐश्वर्य प्रदान करता है। गोप्रेक्ष तीर्थ में स्नान करके भक्त को मुखनिर्मालिका गौरी का दर्शन-पूजन करना चाहिए।
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For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥