Upshanteshwar (उपशांतेश्वर - देवताओं द्वारा क्रोधित भगवान शिव से शांत होने के लिए प्रार्थना करना तत्पश्चात भगवान शिव का शांत होना एवं उपशांत शिव के नाम से काशी में सर्वविदित होना)

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Upshanteshwar
उपशांतेश्वर
देवताओं द्वारा क्रोधित भगवान शिव से शांत होने के लिए प्रार्थना करना तत्पश्चात भगवान शिव का शांत होना एवं उपशांत शिव के नाम से काशी में सर्वविदित होना...

लिङ्गपुराणम्-पूर्वभागः/अध्यायः_९२

भद्रतोयं च पश्येह ब्रह्मणा च कृतंह्रदम् ॥ सर्वैर्देवैरहं देवी अस्मिन्देशे प्रसादितः॥७१॥

गच्छोपशममीशोति उपशांतः शिवस्तथा ॥ अत्राहं ब्रह्मणानीय स्थापितः परमेष्ठिना॥७२॥

भगवान महादेव माता पार्वती से कहते हैं: यह ब्रह्मा द्वारा निर्मित गहरे हृद को देखो। इसका नाम भद्रतोय है। हे देवी! इस स्थान पर सभी देवताओं ने मुझे यह कहकर प्रार्थित किया कि "हे प्रभु, शांत हो जाइये" और मैं शांत हो गया तब से मै यहाँ उपशांत शिव के नाम से जाना जाता हूँ।


लिङ्गपुराणम्-पूर्वभागः/अध्यायः_९२

शैलेशं संगमेशं च स्वर्लीनं मध्यमेश्वरम्॥ हिरण्यगर्भर्मीशानं गोप्रेक्षं वृषभध्वजम्॥१०६॥

उपशांतं शिवं चैव ज्येष्ठस्थाननिवासिनम्॥ शुक्रेश्वरं च विख्यातं व्याघ्रेशं जंबुकेश्वरम्॥१०७॥

दृष्ट्वा न जायते मर्त्यः संसारे दुःखसागरे॥

भगवान महादेव माता पार्वती से कहते हैं: शैलेश्वर, संगमेश्वर, स्वर्लिनेश्वर, मध्यमेश्वर, हिरण्यगर्भेश्वर, गोप्रेक्षेश्वर, वृषध्वजेश्वर, उपशांतेश्वर, ज्येष्ठस्थान में निवास करने वाले देवता, शुक्रेश्वर, व्याघ्रेश्वर और जम्बूकेश्वर इन सभी पवित्र स्थानों का दर्शन करने से मनुष्य दु:ख के सागर रूपी इस संसार में दोबारा जन्म नहीं लेता।


पद्मपुराणम्/खण्डः_३_(स्वर्गखण्डः)/अध्यायः_३७

उपशांतं शिवं चैव व्याघ्रेश्वरमनुत्तमम् ॥ त्रिलोचनं महातीर्थं लोकार्कं चोत्तराह्वयम् ॥१७॥

नारदजी बोले - हे युधिष्ठिर! हे राजन! वाराणसी में और भी तीर्थ हैं। उनका वर्णन सुनो :  उपशांत शिव, उत्तम व्याघ्रेश्वर, त्रिविष्टप नामक महान् तीर्थ, लोलार्क और उत्तरार्क आदि पवित्र तीर्थ हैं।


स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०७३

॥ स्कंद उवाच ॥

अन्यान्यपि च विंध्यारे देव्यै प्रोक्तानि शंभुना ॥ स्वभक्तानां हिताथार्य तान्यथाकर्णयाग्रज ॥५९॥

शैलेशः संगमेशश्च स्वर्लीनो मध्यमेश्वरः ॥ हिरण्यगर्भ ईशानो गोप्रेक्षो वृषभध्वजः ॥६०॥

उपशांत शिवो ज्येष्ठो निवासेश्वर एव च ॥ शुक्रेशो व्याघ्रलिंगं च जंबुकेशं चतुर्दशम् ॥६१॥

मुने चतुर्दशैतानि महांत्यायतनानि वै ॥ एतेषामपि सेवातो नरो मोक्षमवाप्नुयात् ॥६२॥

चैत्रकृष्णप्रतिपदं समारभ्य प्रयत्नतः ॥ आ चतुर्दशिपूज्यानि लिंगान्येतानि सत्तमैः ॥६३॥

स्कन्ददेव कहते हैं- हे द्विज! विन्ध्यपर्वत के शत्रु! भगवान्‌ शंभु ने अपने भक्तगण के हितार्थ अन्य जिन लिङ्गों का वर्णन भगवती से किया था, मैं उसे भी कहता हूं। श्रवण करिये : शैलेश्वर, संगमेश्वर, स्वर्लिनेश्वर, मध्यमेश्वर, हिरण्यगर्भेश्वर, ईशानेश्वर, गोप्रेक्षेश्वर, वृषभध्वजेश्वर, उपशान्तेश्वर, ज्येष्ठेश्वर, निवासेश्वर, शुक्रेश्वर, व्याघ्रेश्वर, जम्बुकेश्वर नामक चतुर्दश लिङ्ग हैं। ये सभी चैत्रकृष्ण प्रतिपदा से प्रारंभ करके यत्नतः पूज्य हैं।


स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०९७

महाबुद्धिप्रदस्तत्र पूज्यो जांबवतीश्वरः ॥ आश्विने येश्वरौ पूज्यौ गंगायाः पश्चिमे तटे ॥ ४४॥

तदुत्तरे भद्रह्रदो गवां क्षीरेण पूरितः ॥ कपिलानां सहस्रेण सम्यग्दत्तेन यत्फलम् ॥ ४५॥

तत्फलं लभते मर्त्यः स्नातो भद्रह्रदे ध्रुवम् ॥ पूर्वाभाद्रपदा युक्ता पौर्णमासी यदा भवेत् ॥ ४६॥

तदा पुण्यतमः कालो वाजिमेधफलप्रदः ॥ ह्रद पश्चिम तीरे तु भद्रेश्वर विलोकनात् ॥ ४७॥

गोलोकं प्राप्नुयात्तस्मात्पुण्यान्नैवात्र संशयः ॥ भद्रेश्वराद्यातुधान्यामुपशांत शिवो मुने ॥ ४८॥

तस्य लिंगस्य संस्पर्शात्परा शांतिं समृच्छति ॥ उपशांत शिवं लिंगं दृष्ट्वा जन्मशतार्जितम् ॥४९॥

त्यजेदश्रेयसो राशिं श्रेयोराशिं च विंदति ॥ तदुत्तरे च चक्रेशो योनिचक्र निवारकः ॥ ५०॥

गंगा के पश्चिम तट पर अवस्थित आश्विनेश्वर नामक शिवलिङ्ग की पूजा करें। इसके उत्तर में गौओं के क्षीर से भरा भद्रहद हृद है। मनुष्य द्वारा एक हजार कपिला गौ को दान करने का जो फल होता है, इस हृद में स्नानादि से निःसंदेह उसी प्रकार के फल की प्राप्ति होती है। जब पूर्वभाद्रपद नक्षत्र युक्त पूर्णमासी तिथि पड़े, तब यहां परमपुण्यकाल होता है। उस समय इस हृद में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञफल मिलता है। उक्त इस के पश्चिम तट पर भद्रेश्वर लिङ्ग का दर्शन करें। इससे मानव निःसंदेह गोलोक गमन करता है। भद्रेश्वर के नैऋत कोण में उपशान्तेश्वर लिङ्ग विराजित है। उपशान्तेश्वर लिङ्ग के संस्पर्श से पराशान्ति का लाभ होता है। इनके दर्शन से सौ जन्मों के पापपुंज नष्ट होते हैं तथा मंगल राशि का संचय होता है। उसके उत्तर में योनिचक्र (गर्भ आगमन) निवारक चक्रेश्वर लिङ्ग स्थित है।


स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_१००

कापिलेय ह्रदे स्नात्वा वीक्षेत वृषभध्वजम् ॥ उपशांतशिवं पश्येत्तत्कूपविहितोदकः ॥५६॥

तदनन्तर कपिल हृद (कपिलधारा) में स्नान कर वृषध्वज का दर्शन करके उपशान्त कूप के जल से तर्पणादि सम्पन्न करके उपशान्तेश्वर का दर्शन करना चाहिये।


उपशांतेश्वर मंदिर में मूल नक्षत्र में जन्मे बच्चों के ग्रह शांति की पूजा : उपशांतेश्वर लिङ्ग का आश्रय ले मूल नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और लम्बी उम्र के लिए मूल शांति करायी जाती है। इसके अतिरिक्त उपशांतेश्वर लिङ्ग का दर्शन और पूजा करने से ग्रह शांति से लेकर पितृदोष तक से शांति मिलती है। जब स्वयं महादेव यहाँ क्रोध से शांत हो गये तो ग्रहों की शांति तो स्वाभाविक ही है।


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EXACT GPS LOCATION : 25.313404686692728, 83.01558820537744

उपशांतेश्वर महादेव अग्निश्वर घाट, पटनी टोला, सी.के. 2/4, वाराणसी में स्थित है।
Upshanteshwar Mahadev is located at Agnishwar Ghat, Patni Tola, C.K.2/4, Varanasi.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी

॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥


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