Pichindil Vinayak
पिचिण्डिल विनायक
पिचिण्डिल विनायक
पिचिण्डिल : मोटे पेट वाला, स्थूलकाय
स्कन्दपुराणम्/खण्डः४(काशीखण्डः)/अध्यायः५७
वरदाद्यातुधान्यां च यातुधानगणावृतः । देवः पिचिंडिलो नाम पुरीं रक्षेदहर्निशम् ॥९५॥
पिचिण्डिलाद्गणपतेर्याम्यां कालविनायकः । भयं न कालकलितं तस्य संसेवनान्नृणाम् ॥१०५॥
वरद विनायक के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) में पिचिण्डिल नामक गणपति हैं। वह यातुधानों (राक्षसों) से घिरे रहते है और दिन-रात नगर (काशी) की रक्षा करते हैं। काल-विनायक पिचिण्डिल नामक गणपति के दक्षिण में है। उनका आश्रय लेने से मनुष्यों को मृत्यु के देवता का भय नहीं रहता है।
लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः१(कृतयुगसन्तानः)/अध्यायः८६
अभयदः सिंहतुण्डः कूणिताक्षो गजाननः । क्षिप्रप्रसादनश्चाथ चिन्तामणिविनायकः ॥४९॥
दन्तहस्तः पिचिण्डिल उद्दण्डमुण्डसंज्ञकः । एतेऽष्टौ तु गणाधीशाश्चतुर्थावरणस्थिताः ॥५०॥
यातुधान : मनुष्येत्तर उपद्रवी योनियों में राक्षस मुख्य हैं, इनमें यातु (माया, छल-छद्म) अधिक था, इसलिए इनको यातुधान कहते थे। ऋग्वेद में इन्हें यज्ञों में बाधा डालने वाला तथा पवित्रात्माओं को कष्ट पहुँचाने वाला कहा गया है। इनके पास प्रभूत शक्ति होती है एवं रात को जब ये घूमते हैं (रात्रिचर) तो अपने क्रव्य (शिकार) को खाते हैं, ये बड़े ही घृणित आकार के होते थे। यातुधान के पास में नाना रूप ग्रहण करने की सामर्थ्य होती है। ऋग्वेद में राक्षस एवं यातुधान में अन्तर किया गया है, किन्तु परवर्त्ती साहित्य में दोनों पर्याय हैं। ये दोनों प्रारम्भिक अवस्था में यक्षों के समकक्ष थे। विभीषण, रावण का भाई तथा भीमपुत्र घटोत्कच भले ही राक्षसों के उदाहरण हैं, जो कि यह सिद्ध करते हैं कि असुरों की तरह ही राक्षस भी सर्वथा भय की वस्तु नहीं होते थे।
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For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥